Sunday 25 August 2013

तुम में बहुत से तुम रहते हो.....

तुम में बहुत से तुम रहते हो,
कभी धुंधली शाम के चाँद जैसे,
कभी तडके की अलसाई अंगड़ाई जैसे,
कोई कोना है तुममे जो नाराज है पूरी दुनिया से,
कोई शख्स है तुमने हँसता है खुदाई जैसे।

Tuesday 20 August 2013

जिसने थामा वहीँ ठहर गये.....

अपने ख्वाबों की लाशों पर से हम गुजरते चले गए,क्या बताएं क़िस्मत के हाथों हम कैसे बिखरते चले गए।


जिन्हें नसीब हो रहमत-ए-खुदा वो बदनसीबी क्या जाने,कोई पूछे उनसे जो एक कतरा मुस्कराहट के लिएआरजू-ए-समंदर निगल गए।

कैद थे कुछ जज्बात दिल के इक रोशन टुकड़े में,एक सर्द हवा जो आई तो वो पन्ने भी ठिठुर गये।

बहकता तूफान भी ढूंढ़ता है शांत सुनसान रस्ते,हम तो फिर भी इंसान थे जिसने थामा वहीँ ठहर गये।