Saturday 21 March 2015

कि वादे तोड़ने के लिए ही किये जाते है.......

एक वक़्त था जब इस जुमले से मुझे ख़ूब चिढ़ मचती थी, लगता था उस शख़्स को कहीं से ढूंढ लाऊँ और सरेआम सूली पर लटका दूँ जिसने ये बेहूदा बात पहली बार कही होगी। पर कमाल तो ये है कि हमने भी इसे हर ज़बान तक ऐसी शान से पहुँचाया जैसे ये जुमला कोई लाइसेंस है अपनी बातों से बार बार मुकर जाने का, अपनी जिम्मेदारियों से भागने का ।
खेर अपनी कहूँ तो स्कूल कॉलेज में तो मेरा ये हाल था कि किसी के  मुँह से ये बात सुन ली तो आधे घंटे के लंबे लैक्चर से पहले वहां से हिलती नहीं थी। फिर धीरे धीरे दुनियाँ को ज़िन्दगी के चश्में से देखने का सिलसिला शुरू हुआ और अहसास हुआ कि वाकई कुछ वादों का टूट जाना पहले से ही तय होता है पर वो इसलिए नहीं कि उन वादों का निभाया जाना मुमकिन नही बल्कि इसलिए कि हम में सच बोलने की ताकत नहीं होती अंजाम जानते हुए भी जूठे वादे करना हमारी आदत में शुमार हो जाता है । और इस आदत का सबसे ज्यादा खामियाज़ा भी हमें ही भुगतना होता है, दूसरे हमारे किये गए जूठे वादों से बेअसर बचने का हुनर सीख लेते है। पर खुदसे हर रोज़ किये वादे और उन्हें न निभाए जाने के गिल्ट से बचना आसान नहीं होता।
मैंने भी कई बार इस जुमले के सहारे अपनी रातों को बचाया है ।
अब सोचती हूँ कहीं से ढूंढ लाऊँ उस शख़्स को जिसने खुदसे बचने का ये बेजोड़ नुस्ख़ा इज़ाद किया ।

कभी कभी आधी रात को पानी पीने के बहाने से उठकर बाक़ी रात करवटें बदलकर इसकी कीमत चुकानी पड़ती है और ऐसे में खुदको तस्सल्ली देंने के लिए सिर्फ ऐसे बेहूदा जुमले ही काम आते है।
एक बार उसे शुक्रिया करना तो बनता ही है।

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